जिस तरह से रबी फसल की मार्केटिंग के मौसम में वर्कफोर्स का पलायन का खतरा मंडरा रहा है, यही हाल खरीफ के मौसम में भी हो सकती है क्योंकि हरियाणा और पंजाब के माइग्रेंट लेबर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के खत्म होने के इंतजार में है।
सरकारी खरीद एजेंसियां मनरेगा वालों को रख रही हैं काम पर
मजदूरों की भारी कमी से निपटने के लिए, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों की सरकारी खरीद एजेंसियों ने लॉकडाउन से प्रभावित प्रवासियों के प्रवाह को भरने के लिए मनरेगा के तहत स्थानीय लोंगो को नौकरी पर रखने की शुरुआत कर दी है। गेहूं की खरीद में लगे पंजाब स्थित एक कमीशन एजेंट ने कहा, "मेरे पांच नियमित मजदूरों ने इस सप्ताह काम के लिए रिपोर्ट नहीं की और वे शायद उत्तर प्रदेश चले गए। प्रवासी मजदूर अब एक तिहाई रह गए हैं और मैं स्थानीय लोगों को काम पर रखने को मजबूर हूं।
यूपी और बिहार से आते हैं ज्यादा मजदूर
गौरतलब है कि हर साल बेहतर आय के लिए मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार से बड़ी तादाद में मजदूर पंजाब और हरियाणा में आते हैं और गेहूं खरीद और धान की रोपाई के समय मजदूरी करते हैं। पर इस साल कोरोना महामारी के कारण अंतरराज्यीय यात्रा रोकने से मजदूरों की दिक्कत बढ़ गई है। एक तो जो मजदूर पहले से पंजाब या हरियाणा में थे वे अभी भी लॉक डाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपने राज्य चले जाएं और जो मजदूर पहले गए हैं वे अब स्थिति सामान्य होने तक वापस नहीं आना चाहते हैं।
26,000 कमीशन एजेंटों को पास जारी
पंजाब के अतिरिक्त मुख्य सचिव (डेवलपमेंट) विश्वजीत खन्ना कहते हैं कि इस तरह के मौसम में और मंडी संचालन के लिए ज्यादातर दूसरे राज्य के ही मजदूर काम पर लगाये जाते हैं। पंजाब में गेहूं खरीद के लिए 26,000 से अधिक कमीशन एजेंटों को पास जारी किए गए हैं। फिलहाल गेहूं की कटाई और उसकी मार्केटिंग के लिए लेबर की कमी है, लेकिन हम स्थानीय लोगों को काम पर लगाये हुए हैं। एक बड़ी चिंता धान की बुआई सीजन की है, लेकिन हमें उम्मीद है कि तब तक स्थिति आसान हो जाएगी।
गेहूं के उत्पादन पर गहरा संकट
अगर स्थिति और भी खराब होती है तो आगामी धान की बुआई के मौसम में राज्य को मनरेगा मजदूरों और स्थानीय मजदूरों पर निर्भर रहना होगा। खन्ना ने कहा, 'यह एक चुनौती होगी क्योंकि धान की रोपाई और बुवाई एक कुशल काम है और प्रवासी मजदूर इसे कुशलता से करते हैं। लॉक डाउन के पालन के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों ने इस साल गेहूं के उत्पादन पर एक गहरा संकट खड़ा कर दिया है इससे आगे चलकर इसकी शॉर्ट सप्लाई भी हो सकती है।
मध्यप्रदेश में रेड जोन से संचालन प्रभावित
खन्ना ने कहा, मंडियों में भीड़ से बचने के लिए सामान्य में 20-22 दिनों के बजाय खरीद को 40-45 दिन तक बढ़ा दिया गया है और हम सामान्य 10-10.5 लाख टन के बजाय पीक डेज के दौरान प्रतिदिन 4-4.5 लाख टन करने का लक्ष्य रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस साल खरीद मंडियों की संख्या दोगुनी कर दी गई है। मध्यप्रदेश के रेड जोन में आने और भोपाल, इंदौर और उज्जैन जिलों में बीमारी फैलने से मंडी का संचालन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। उत्तर प्रदेश में कुछ इलाकों में कृषि मजदूरों की अस्थायी कमी भी देखी जा रही है क्योंकि कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों की कम उपलब्धता से शारीरिक श्रम की मांग बढ़ गई है।
मुंबई, दिल्ली, बंगलुरू भी प्रभावित
वैसे यह दिक्कत केवल खेती तक नहीं सिमटी है। मुंबई, दिल्ली, बंगलुरू, अहमदाबाद, जयपुर, भीलवाड़ा जैसे शहरों में जहां बड़े पैमाने पर दूसरे राज्यों से कामगार आते हैं, वहां अगर लॉकडाउन खत्म होने के तुरंत बाद मजदूर नहीं आते हैं तो इंडस्ट्री बंद रखने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। क्लोथिंग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राहुल मेहता कहते हैं कि कामगार ही नहीं हैं। या तो वे अपने गांव चले गए और या तो वे फंस गए हैं। इन दोनों स्थितियों में कामगारों की बहुत कमी महसूस होगी। ज्यादातर कामगार कंस्ट्रक्शन, पैकेजिंग, वेयरहाउस, लोडिंग, छोटे-छोटे कारखानों, बीड़ी, सिगरेट, टेक्सटाइल्स आदि जैसे रोजगारों में लगते हैं।
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