नई दिल्ली: घर खरीदने वाला हर इंसान होम लोन लेता है। इस बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक ( rbi ) द्वारा लोन प्राइसिंग को पारदर्शी बनाने के लिए एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट्स से लिंक करने के आदेश 2019 में ही दे दिये गए थे, लेकिन बैंक्स आज भी कस्टमर्स को इनके बारे में नहीं बताते हैं। नया सिस्टम कस्टमर्स के लिए कापी प्रॉफिट वाला है लेकिन जानकारी के अभाव में लोग आज भी पुरानी स्कीम से जुड़ें है या हो हो सकता है कि आप मौजूदा मार्केट दर से कहीं अधिक ब्याज दर चुका रहे हों और आपको इस बात का पता ही न हो। ग्राहक अपने आप नए सिस्टम में शिफ्ट नहीं कर सकते हैं बल्कि इसके लिए उन्हें अपने बैंक से संपर्क करना होगा और RLLR को अपनाने के लिए कहना होगा।
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आज की तारीख में कस्टमर्स की सबसे बड़ी शिकायत ये है कि अगर RBI ब्याज दरों (Policy Rates) में इजाफा करता है तो बैंक लोन पर ब्याज दर को बढ़ा देते हैं, लेकिन RBI के कटौती करने पर बैंक ब्याज दर को नहीं घटाते हैं। या अगर करते भी है तो बेहद कम । इसी को ध्यान में रखते हुए RBI ने 1 अक्टूबर 2019 से इंटर्नल बेंचमार्क की जगह एक्सटर्नल बेंचमार्क लागू कर दिया है।
क्या है एक्सटर्नल बेंचमार्किंग?
दरअसल बैंक अपने लोन को मॉर्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) से या बेस रेट से लिंक करते हैं और ये दोनों बैंक के इंटर्नल बेंचमार्क (Internal Bechmark) हैं। जैसे 27 मार्च को RBI ने रेपो रेट (Repo Rate) में 75 आधार अंक की कटौती की और इसके बाद बैंकों को रेपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) में भी इतनी ही कटौती करनी पड़ी। सभी बैंक को इंटरेस्ट रेट कम हो गए लेकिन अक्टूबर 2019 के पहले दिए गए लोन पर MCLR में बेहद मामूली कटौती हुई। SBI ने MCLR में 35 बेसिस प्वाइंट की ही कटौती की जिसके बाद यह 7.75 फीसदी से घटकर 7.4 फीसदी हुआ. यह 10 अप्रैल से लागू किया गया। जबकि RLLR के तहत सिर्प 6.6 फीसदी रेट है।
ऐसे में नई व्यवस्था पहले की तुलना में अधिक पारदर्शी और ग्राहकों के लिहाज से बेहतर है. लेकिन, लेनदारों को एक बात का ध्यान रखना होगा कि जब वो एक्सटर्नल बेंचमार्क को अपना लेते हैं तो उनके पास इंटर्नल बेंचमार्क में जाने का विकल्प नहीं होगा। तो अगर आप अभी भी पुरानी व्यवस्था से चल रहे है तो बैंक से संपर्क कर उसे बदलवाएं कयोंकि वो आपको फायदा देगा।
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