उच्च शिक्षा हर व्यक्ति के जीवन में एक अहम भूमिका निभाती है। हालांकि, अब यह काफी महंगी हो चुकी है। उच्च शिक्षा के लिए आसानी से एजुकेशन लोन मिल जाता है जिस के ब्याज पर आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80ई के तहत छूट भी मिलती है। छूट के रूप में स्वीकार्य राशि की कोई ऊपरी सीमा नहीं है।
सीए निक्की झमटानी (असोसिएट पार्टनर,चिर अमृत लीगल एलएलपीइस)बताती हैं कि कटौती का दावा जिस साल से व्यक्ति लोन का भुगतान करना शुरू करता है से लेकर कुल आठ निर्धारित वर्षों में किया जा सकता है। या वर्षों या जिस वर्ष में ब्याज का पूरा भुगतान हो जाए। इसमें भारत और विदेश में उच्च शिक्षा के लिए लिए गए कर्ज शामिल हैं।
उदहारण से समझें
उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति जो 30% टैक्स स्लैब में आता है। वह अगर 10 लाख रुपए का उच्च शिक्षा के लोन 10.5% की ब्याज दर पर 8 साल के लिए लेता है, तो वह कर्ज की अवधि के दौरान कुल 4,82,282 रुपए ब्याज देगा और 1,50,460 रुपए आयकर बचा पाएगा। इस प्रकार उसके उच्च शिक्षा के लोन पर ब्याज की प्रभावी दर 7.22% रह जाती है।
उच्च शिक्षा के लिए ली जाने वाली कोचिंग पर मिलता है टैक्स छूट का लाभ
कॉलेज या विश्वविद्यालय में एडमिशन के बाद यदि कोई व्यक्ति कॉलेज की फीस, हॉस्टल शुल्क आदि के भुगतान के लिए कर्ज लेता है तब तो उसे धारा 80ई में छूट मिलती ही है, लेकिन सवाल यह है कि एडमिशन से पहले अगर कोई व्यक्ति निजी कोचिंग क्लासेस की फीस भरने के लिए कर्ज लेता है, तब भी क्या वह इस धारा में छूट ले सकता है या नहीं? इस संबंध में यह ध्यान देने योग्य है कि हालांकि इस प्रावधान का उद्देश्य किसी ऐसे पाठ्यक्रम के मामले में कटौती देना है जिसके परिणाम स्वरूप कोई डिग्री या डिप्लोमा मिले, इसकी शाब्दिक व्याख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि कोई व्यक्ति उच्च शिक्षा के लिए ली गई निजी कोचिंग की फीस भरने के लिए लोन लेता है, तब भी वह कटौती का दावा कर सकता है। लेकिन यह दावा एडवाइजर से सलाह लेने के बाद ही करना चाहिए।
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