मुकेश अंबानी 1.60 लाख करोड़ के कर्ज से मुक्त हो रहे हैं, अनिल अंबानी कर्ज से दिवालिया होकर अध्यात्म का रास्ता तलाश रहे हैं - SAARTHI BUSINESS NEWS

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Friday, June 5, 2020

मुकेश अंबानी 1.60 लाख करोड़ के कर्ज से मुक्त हो रहे हैं, अनिल अंबानी कर्ज से दिवालिया होकर अध्यात्म का रास्ता तलाश रहे हैं

एशिया के सबसे अमीर बिजनेस मैन मुकेश अंबानी अपनी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के ऊपर 1.60 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को चुकाने का अंतिम चरण पूरा कर चुके हैं। दूसरी ओर उनके छोटे भाई और रिलायंस एडीएजी के चेयरमैन अनिल अंबानी कर्ज के भारी-भरकम बोझ के तले दबने से दिवालिया होने की कगार पर हैं। वे अब जिंदगी को अध्यात्म के रास्ते पर ले जाने की सोच रहे हैं। अनिल अंबानी अपनी तमाम कंपनियों को बेच चुके हैं। बावजूद इसके उन पर देनदारी कम नहीं हो रही है।

हालात यह है कि उनको कर्ज से निपटने के लिए कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। दोनों भाइयों की दुश्मनी का अब यह फाइनल सीन है। यह इतिहास के पन्नों में दर्ज होनेवाली सीन है।

बाएं से धीरूभाई अंबानी, अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी और कोकिलाबेन अंबानी

अनिल अंबानी ने कहा, मेरी नेटवर्थ जीरो है

अनिल अंबानी गुरुवार को 61 साल के हो गए। साल 2008 में वे 42 अरब डॉलर के साथ विश्व के बिलिनेयर क्लब का हिस्सा थे। 2018 में मुकेश अंबानी का नेटवर्थ 43 अरब डॉलर था जो इस समय 56.5 अरब डॉलर है। 2019 सितंबर तक 93,000 करोड़ का कर्ज अनिल अंबानी पर था। अनिल अंबानी ने पिछले हफ्ते में यूके कोर्ट में कहा कि इस समय उनकी नेटवर्थ जीरो है।

बुधवार को राइट्स इश्यू सफल, शुक्रवार को अंतिम पूंजी जुटाई

तमाम प्राइवेट इक्विटी और अन्य रास्तों से रिलायंस इंडस्ट्रीज के कर्ज का निपटारा दिसंबर तक हो जाएगा। बुधवार को राइट्स इश्यू से 53,125 करोड़ रुपए के साथ कर्ज चुकाने की राशि जुटाने के बाद शु्क्रवार को अंतिम डील हुई। दुबई की मुबाडला ने जियो में 9,093 करोड़ रुपए में 1.85 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी है। ये बात सच है कि कोरोना वायरस महामारी में बाकी बड़े बड़े अमीरों की कंपनियों के जैसे रिलायंस के स्टॉक को भी घाटा हुआ है। खासकर ऑयल की कीमतों में कमी होने की वजह से। परंतु यह भी सच है कि पिछले कुछ दिनों में इसके स्टॉक को हुए नुकसान की लगभग रिकवरी हो चुकी है। इसकी वजह जियो की फेसबुक को 5.7 अरब डॉलर के एवज में बेची गई हिस्सेदारी है।

धीरूभाई अंबानी, मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी

बदलते समय के अनुसार खुद भी बदल गए हैं मुकेश अंबानी

अपनी किस्मत के भरोसे मुकेश अब सफलता की नई इबारत लिखने लगे हैं। पहले वो मीडिया और फोटोग्राफरों से हमेशा बचते थे। और कभी कभार ही इंटरव्यू देते थे। परंतु अब वो काफी बदल गए हैं। न सिर्फ मीडिया और खुद के इवेंट्स में धडल्ले से अपने बिजनेस को प्रमोट करते नजर आते हैं। यही नहीं, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम या दावोस जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी नियमित पैनलिस्ट के रूप में भाग लेते हैं। मुंबई की हाई सोसाइटी के बीच मुकेश ही नहीं, उनकी पत्नी नीता अंबानी भी काफी सक्रिय हो गई हैं। कोविड-19 के प्रकोप से पहले तक मुकेश अंबानी की 27 मंजिला आलीशान अंटीलिया में अक्सर कोई न कोई बड़े आयोजन होते रहते हैं।

शारीरिक रूप से स्वस्थ अनिल और धार्मिक हो रहे हैं

अनिल, इसके विपरीत, लगभग पूरी तरह से घिर गए हैं। फिटनेस के शौकीन अनिल शारीरिक रूप से बेहतर हालत में हैं। सुबह-सुबह 10 मील तक दौड़ जाते हैं। जो लोग उन्हें जानते है वह कहते हैं कि अनिल और अधिक धार्मिक हो गए हैं और अपनी मां के साथ हिंदू धार्मिक स्थलों पर मत्था टेक रहे हैं। दोस्तों को बताते हैं कि भौतिक सफलता, आध्यात्मिक उन्नति की तुलना में खोखला है।

कमबैक के लिए अभी भी 14 घंटे काम कर रहे हैं अनिल

अनिल अभी भी चीजों को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। और इसके लिए दिन में 14 घंटे काम कर रहे हैं ताकि कंपनियों को बचाया जा सके और अपनी शेष संपत्ति की रक्षा की जा सके। स्थिति की जानकारी रखने वाले व्यक्ति के मुताबिक अनिल को दिवालिया घोषित करने और नई शुरुआत करने की सलाह दी गई है। लेकिन अनिल ने इससे इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि इससे कमबैक का अवसर हाथ से निकल जायेगा।

एक दर्जन से अधिक कर्जदार अनिल का पीछा कर रहे हैं

अनिल की कंपनियों में से एक, डिफेंस कांट्रेक्टर भी दिवालियापन की स्थिति में आ गया है। एक सितंबर को हुई शेयरधारक की बैठक में एक वकील ने कहा कि उसने अनिल के कारोबार में पैसे डालकर सब खो दिया। उसने यह भी कहा कि वह इसके खिलाफ एक लॉ-सूट फाइल करने की सोच रहा है। आजकल एक दर्जन से अधिक लोन देने वाले लोग अनिल का पीछा कर रहे हैं। उनमें से तीन राज्य नियंत्रित चीनी बैंकों का एक समूह है जिसने 2012 में रिलायंस कम्युनिकेशंस को अपने नए नेटवर्क का निर्माण करने हेतु 925 मिलियन डॉलर उधार दिए थे। इन बैंकों ने हाल ही अनिल के खिलाफ लंदन में मुकदमा यह कहकर दावा है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से ऋण की गारंटी दी थी।

कभी भी व्यक्तिगत गारंटी नहीं दी- अनिल अंबानी

फरवरी की सुनवाई में अनिल ने दलील दी कि उन्होंने कभी व्यक्तिगत गारंटी नहीं दी और उनके पास बैंकों को देने के लिए कुछ नहीं था। उन्होंने कहा कि उनकी वर्तमान व्यक्तिगत संपत्ति 90 लाख डॉलर है, जिसे 30 करोड़ डॉलर से अधिक की देनदारियों के खिलाफ निर्धारित किया गया है। जज डेविड वाक्समैन ने हालांकि संदेह जताया कि अनिल की वित्तीय स्थिति वाकई इतनी विकट है। वाक्समैन ने कहा, "एक निजी जेट, एक नौका और एक 11 कार वाली मोटर पूल को देखते हुए उन्हें नहीं लगता कि अनिल फ्रैंक हैं। इसके अलावा भी जज ने कहा कि मुकेश से अधिक सहायता की हमेशा से संभावना थी।

कोर्ट में पढ़े बयान में अनिल ने इस पर अपनी असहमति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि भाई से मिलने वाली सहायता दोहराने के काबिल नहीं होती। उन्होंने कहा, "मैं पुष्टि करता हूं कि मैंने जांच की है, लेकिन मैं बाहरी सौर्सेस से पैसा नहीं जुटा पा रहा हूं।

अलग होने के बाद अंबानी परिवार में सबसे बड़ा आयोजन

पिछले साल मार्च में मुकेश अंबानी के बेटे आकाश अंबानी की श्लोका मेहता के साथ संपन्न हुई शादी इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा गई। यह एक ऐसी शादी, जिसे बड़े-बड़े पंडित हमेशा याद करते रहेंगे। शादी के रस्मों की शुरुआत स्विस एल्प में हुई, जिसमें देश-विदेश के चुनिंदा मेहमान अपने निजी विमान से सेंट मोर्टिज पहुंचे। उन्होंने इस शादी के जोड़े को अपना आशीर्वाद प्रदान कर इसे यादगार बना दिया। इसके बाद सभी मेहमान वापस मुंबई आए और तीन दिनों तक ग्रैंड रिसेप्शन चला। इसमें अंबानी परिवार से संबंधित देश भर के सभी शुभचिंतकों ने शिरकत की और वर वधू को आशीर्वाद दिया।

बाद में इस शानदार शादी की चर्चाएं अखबारों की सुर्खियां बनीं। रिसेप्शन के दौरान विशेष रूप से कारीगर द्वारा डिजाइन की गई मोर की मूर्ति लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही। इन सबके अलावा कन्वेंशन सेंटर के बीचों बीच भगवान कृष्ण की विशालकाय मूर्ति मानो सभी को अपने वश में कर लिया था।

शादी में अरबों डॉलर का खर्च, पर मुकेश के लिए यह जेब खर्च जैसा

शादी इतनी महंगी थी कि इसका खर्च अरबों डॉलर में था। मुकेश अंबानी जैसे समृद्ध शख्सियत के लिए यह पॉकेट खर्च जैसा था। बता दें कि मुकेश अंबानी रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन हैं, जो ऑयल रिफाइनरी, केमिकल प्लांट, सुपर मार्केट, और एशिया के सबसे बड़े मोबाइल नेटवर्क जियो को कंट्रोल करते हैं। ब्लूमबर्ग की अरबपतियों के इंडेक्स के अनुसार मुकेश अंबानी की कुल व्यक्तिगत संपत्ति 53 अरब डॉलर है, जो उन्हें एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति होने का गौरव प्रदान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद शायद उन्हें भारत का सबसे पावरफुल नागरिक होने का टैग भी लग जाता है।

बाएं से मुकेश अंबानी, धीरूभाई अंबानी और अनिल अंबानी

विश्व में भाईयों की सबसे महंगी दुश्मनी में हुई मुकेश अंबानी की जीत

जैसे ही शादी की शुरुआत हुई, मुकेश के छोटे भाई अनिल अंबानी भी मेहमानों की आवभगत के लिए शादी समारोह में पधारे। पूरे आत्मविश्वास के साथ छोटे भाई ने पारिवारिक कर्तव्यों को पूरा किया। इससे उपस्थित मेहमान भी संतुष्ट नजर आए। अनिल अंबानी ने आकाश को कुछ टिप्स भी दिए कि शादी और अन्य समारोह के दौरान उन्हें कैसे पेश आना है। यह शादी उस समय हो रही थी, जब दस दिन बाद अनिल अंबानी को अदालत में मुकदमा हारने के बाद 80 मिलियन डॉलर का कर्ज चुकाने का आदेश दिया गया था। यह भी तय था कि अगर वह तय समय पर ऐसा करने में असफल रहते हैं तो उन्हें जेल भी हो सकती है।

अंबानी परिवार की साख पर आंच न आए, कोकिलाबेन ने की पहल

यह किसी भी भारतीय बिजनेस समुदाय के खिलाफ सबसे बड़ा जुर्माना माना जा रहा था। इसी दौरान काफी हफ्तों तक मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी की आपस में चर्चा चल रही थी कि इससे कैसे निपटा जाए। अंत में दोनों की माता कोकिलाबेन ने दखल दिया और बड़े भाई से बोला कि इसका कोई ऐसा अंतिम हल निकाल लिया जाए जिससे दोनों भाइयों और अंबानी परिवार की साख पर कोई आंच न आए। परंतु मुकेश अपने कर्जदार भाई को जेल से बचाने के मूड में नहीं दिख रहे थे। क्योंकि इसके बदले में अनिल ने कोई कोलैटरल नहीं दी थी।

बिजनेस साम्राज्य को अलग कर व्यापारिक दुश्मन बने दोनों भाई

दोनों भाइयों के बीच में हुई अंतिम क्षण की बातचीत भारतीय बिजनेस की दुनिया के इतिहास में एक परिवार से बिखराव और उससे बचने के तौर पर याद किया जाएगा। अंबानी भाइयों ने अपने कैरियर की शुरुआत आपस में एक दूसरे का सहयोगी बनकर की थी। जिसे कभी अनिल अंबानी ने एक विचार और दो शरीर का नाम दिया था। लेकिन धीरूभाई अंबानी की मौत के बाद दोनों भाइयों के बीच में दरार बढ़ती गई।

पहले तो इन दोनों ने अपने-अपने बिजनेस साम्राज्य को अलग कर लिया और बाद में एक दूसरे के व्यापारिक दुश्मन भी बन गए। तब से इन दोनों भाइयों के बीच दुश्मनी भारत की अर्थव्यवस्था के इतिहास में कभी न भूलनेवाला अध्याय बन चुका है।

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद मुकेश बढ़ते गए

हिंदू राष्ट्रवाद के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद मुकेश अंबानी के फारच्यून में अचानक वृद्धि होने लगी। जबकि अन्य उद्योगपतियों जिसमें अनिल अंबानी भी शामिल थे, उनकी परिसंपत्तियों और व्यवसायों में गिरावट आने लगी। इसके बारे में जब अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी या उनकी कंपनियों के प्रमुखों से कमेंट मांगा गया तो किसी ने इसका जवाब नहीं दिया।

बहरहाल अदालत की तारीख आते-आते तक दोनों भाइयों के बीच में कोई सुलह नहीं हो पाई थी। हालांकि अंबानी परिवार को नजदीक से जानने वाले लोग यही कहते रहे कि दोनों भाइयों के बीच बातचीत स्वच्छ वातावरण में हो रही है, परंतु उद्योग जगत के नजदीकी सूत्रों की माने तो ऐसा कुछ नहीं था। बाद में अनिल अंबानी को मुकेश अंबानी के समक्ष मदद मांगनी पड़ी।

धीरूभाई ने कंज्यूमर की नब्ज टटोलकर शुरू की कंपनी

अंबानी भाइयों की कहानी किसी परियों की अंगूठी की भांति प्रतीत होती है। गुजरात के किसी छोटे से कस्बे में गैस स्टेशन पर अटेंडेंट का काम करनेवाले धीरूभाई ने 1970 के दशक की शुरुआत में ही कंज्यूमर मार्केट की नब्ज को पकड़ लिया था। जब उन्होंने नायलॉन, पॉलीस्टर और दूसरे सिंथैटिक मटेरियल जो कि उस समय भारत में बहुत कम बनते थे, की आपूर्ति करनी शुरू कर दी। उन्होंने 1973 में बतौर एक ट्रेडिंग हाउस रिलायंस की स्थापना की और धीरे-धीरे इसके ऑपरेशन ने विस्तार किया। इसे एक फाइबर का मैन्युफैक्चरिंग हब बना दिया। इसके बाद वे ऑयल रिफाइनरी के क्षेत्र में आ गए और 80 का दशक समाप्त होते -होते यह कंपनी बाजार में छा चुकी थी। यह केमिकल का इकलौता मैन्युफैक्चर बन चुकी थी।

ब्यूरोक्रेट से रिश्ते साध कर धीरूभाई ने बढ़ाया कारोबार

बिजनेस वर्ल्ड में धीरूभाई या धीरजलाल को शुरुआत में सिर्फ एक फैक्टरी के ऑपरेटर के तौर पर जाना जाता था। 1990 के पहले तक भारत की कंपनियों में तथा कथित लाइसेंस राज का खौंफ छाया हुआ था। इसके अतिरिक्त इंपोर्ट में कोटा, परमिट की जरूरतें और कीमत नियंत्रण जैसे फैक्टर अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में लेकर बैठे हुए थे। धीरूभाई में सबसे खास बात यह थी कि वह लोगों से हमेशा एक कदम आगे की सोचते थे।

रिलायंस में शुरुआती दिनों में काम कर चुके लोगों के अनुसार धीरूभाई ने दिल्ली के बाहर ऑफिस बिल्डिंग बनाई जिसमें उ्न्होंने रिटायर हो चुके ब्यूरोक्रेट को काम पर रखा। उन्होंने बड़े बड़े अधिकारियों के बच्चों को ट्रेस किया, ताकि उन्हें रिलायंस द्वारा फंड की गई स्कॉलरशिप देकर उन्हें विदेशों में पढ़ाई के लिए भेजा जा सके।

दिवाली में मिठाई और सोने की सिक्का की परंपरा

रिलायंस के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि दिवाली के समय चुनिंदा मंत्रालयों के बाबुओं को मिठाई के डिब्बे और उसके साथ सोने और चांदी के सिक्के भेजने की प्रथा की शुरुआत तभी से हुई थी। इससे वे लोगों को ऑबलाइज कर यह जान लेते थे कि उनके वरिष्ठ बाबू किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। या उनके मन में क्या चल रहा है। मुकेश अंबानी 1957 में और अनिल अंबानी 1959 में पैदा हुए थे। और उनकी परवरिश करने में धीरूभाई ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और बचपन से ही उनमें व्यापार की दुनिया में सफल रहने का बीजमंत्र बोया।

अनिल अंबानी ने बताया था कि हफ्ते के अंतिम दिनों में उनके पापा दोनों भाइयों को कहीं बाहर ले जा कर ऐसा काम करने को बोलते थे जिसे करने पर कुछ न कुछ इंसेंटिव मिलता रहता था।

जब पहला पारिवारिक समारोह मुकेश की शादी से हुआ

शुरुआत से ही किसी को भी शक नहीं था कि यही दोनों भाई आगे चलकर रिलायंस का फैमिली बिजनेस संभालेंगे। और यही हुआ भी। 25 साल की उम्र के आस पास ही दोनों भाइयों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं संभाल लीं। मुकेश को रिलायंस की फैसिलिटीज में मैनेजर की जिम्मेदारी दी गई। जबकि अनिल अंबानी को सरकारी अधिकारियों निवेशकों और प्रेस से डील करन का जिम्मा दिया गया। दोनों की भूमिकाएं उनके व्यक्तित्व के मुताबिक थीं। मुकेश हमेशा से बिना इन किए हुए शर्ट पहनते थे और उनकी शादी भी 27 साल की उम्र में उनके पिता द्वारा चुनी हुई पुत्रबहु से कर दी गई।

फैशनेबल थे अनिल, सादे थे मुकेश अंबानी

शुरुआत के दिनों में वे ज्यादातर शाम को घर पर पुराने हिंदी सिनेमा देखते थे। जबकि अनिल अंबानी बन ठन कर अच्छे खासे शूट में और अच्छी हेयर स्टाइल में रहते थे। जो कि किसी भी बंबई के भीड़ का आसानी से हिस्सा बन जाते थे। और साथ ही साथ उनकी दोस्ती बालीवुड के दिग्गजों से भी होने लगी। वे कभी-कभी अपने कॉरपोरेट जेट में लिफ्ट दे दिया करते थे। अनिल अंबानी ने जब 31 साल की उम्र मे अपनी शादी टीना से की तो उनके माता पिता ने सार्वजनिक रूप से इस शादी पर नाराजगी जता दी थी।

एक तरफ मुकेश अंबानी जहां सार्वजनिक कार्यक्रम में बहुत ही कम देखे जाते थे, वहीं दूसरी ओर अनिल अंबानी लगभग हर साल रिलायंस के हेडक्वार्टर में पत्रकारों के साथ जुटे रहते थे। या अपनी कंपनी के दशा और दिशा की चर्चा किसी चौराहे पर कोई चाट खाते हुए बातचीत करते हुए तय करते थे।

धीरूभाई के जीवित रहने तक दबा था मनमुटाव

2001 आते-आते रिलायंस सभी मायने में कॉर्पोरेट जगत की एक बड़ी हस्ती बन चुकी थी और इसका फैलाव फाइनेंशियल सर्विसेस, इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन और टेलीकम्युनिकेशन के साथ साथ ऑयल रिफाइनिंग के ऑपरेशन में इतना ज्यादा हो चुका था कि इसका सीधा असर नेशनल ट्रेड डेफिसिट पर पड़ने लगा। दोनों अंबानी बंधुओं के बीच तनानती या मनमुटाव की खबरें उनके पिता के जीवित रहने तक दबी रही। परंतु साल 2002 में 69 साल की उम्र में धीरूभाई की अचानक मौत ने आनेवाले दिनों की आहट दे दी थी। क्योंकि वे अपना उत्तराधिकारी किसे चुनेंगे, इस पर कोई फैसला नहीं किया था। लोगों को भी नहीं पता था कि धीरूभाई के दिल में क्या था।

जब मुकेश चेयरमैन और अनिल वाइस चेयरमैन बने

दोनों बंधुओं ने उम्र को मानक बनाया और इसके हिसाब से मुकेश रिलायंस का चेयरमैन और अनिल वाइस चेयरमैन बने। धीरे-धीरे इन दोनों में दरार बढ़ती गई। हर एक दूसरे को ऐसा लगा कि दोनों अपने अपने स्तर पर स्वतंत्र फैसले ले रहे हैं। मुकेश को सबसे ज्यादा गुस्सा तब आया था, जब अनिल अंबानी ने बिना उनसे सलाह मशविरा किए पावर जनरेशन प्रोजेक्ट की घोषणा कर दी। अनिल अंबनी को तब गुस्सा आया था जब मुकेश अंबानी बिना कुछ बताए रिलायंस के शेयरों में परिवार की हिस्सेदारी और उसके प्रबंधन में रीस्ट्रक्चरिंग कर दी। मुकेश अपने आप को एक निर्विवाद बॉश मानने लगे थे। जबकि अनिल खुद को किसी से कम नहीं समझते थे।

धीरूभाई की मौत के बाद सार्वजनिक हुआ विवाद

दोनों भाइयों में दरार धीरूभाई की मौत के दो साल बाद सार्वजनिक हुई जब रिलायंस के बोर्ड ने एक मोशंस पास किया। इसमें कहा गया था कि अनिल अंबानी अब सारा कामकाज चेयरमैन की अथॉरिटी के अंतर्गत करेंगे। अनिल से जुडे व्यवसायिक दोस्तों के अनुसार अनिल को यह बात अखर गई। उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। इससे एक तरह का अंबानी परिवार में सिविल वार शुरू हो गया।

जब वित्तमंत्री को देना पड़ा दखल

एक बार तो अनिल अंबानी ने रिलायंस के फाइनेंशियल स्टेटमेंट पर यह कहकर दस्तखत करने से मना कर दिया कि इसमें सारे खुलासे आधे-अधूरे हैं। एक समय तो ऐसा आया कि भारत के वित्तमंत्री को यह अपील करनी पड़ी कि दोनों भाई आपस के मतभेद सुलझा लें। जब बात हद से गुजर गई तो परिवार की मुखिया कोकिलाबेन बीच बचाव को उतरी। 2005 में एक स्टेटमेंट जारी कर उन्होंने कहा कि दोनों भाइयों ने आपसी सहमति से पारिवारिक और व्यवसायिक दायित्वों की पूर्ति के लिए मामला सुलझा लिया है।

2007 में अनिल देश के तीसरे अमीर बिजनेस मैन बने

मुकेश को धीरे-धीरे वृद्धि कर रही रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल के बिजनेस का अधिकार मिल गया। जबकि अनिल को लंबी अवधि वाले फाइनेंशियल सर्विसेस पावर जनरेशन और टेलीकम्युनिकेशन का साम्राज्य मिला। यह भारत के कॉरपोरेट जगत का सबसे बड़ा बंटवारा था। फोर्ब्स इडिया की 2007 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अनिल का नेटवर्थ तीन गुना बढ़कर 45 बिलियन अरब डॉलर हो गया जिससे वे देश के तीसरे अमीर नागरिक बन गए। जबकि उसी समय उनके भाई मुकेश का नेटवर्थ 49 बिलियन डॉलर था। अपने हाथ में इतना पैसा आया देख अनिल ने फिल्म प्रोडक्शन में भी हाथ आजमाया, जिसमें उन्होंने स्टीवन स्पीलबबर्ग को सपोर्ट किया।

फिल्मी दुनिया से अनिल की दिक्कतें शुरू हुई

कभी-कभी अनिल अंबानी फिल्मों की स्क्रीन के लिए मुंबई के सभी संभ्रांत लोगों को अपने घर पर बुलाते थे। जबकि मुकेश इम सब मामलों से दूर का नाता रखते थे। यह सिलसिला यूं ही दस साल तक चलता रहा। पर बाद में अनिल के व्यवसाय में दिक्तकें आने लगी। पावर प्रोजेक्ट फेल होने लगे। उनको फिर से राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल नेटवर्क की स्थापना करनी पड़ी। जबकि इसी समय मुकेश अंबानी की कंपनी जो कि उस समय 40 बिलियन डॉलर कमा रही थी एक अवसर देखा।

2016 में जियो की लांचिंग ने एक और आरआईएल की नींव डाली

यही वह समय था जब मुकेश की नजर टेलीकम्युनिकेशन पर पड़ी। जब भारत की आधी आबादी के पास ही मोबाइल फोन था, 2016 में उन्होंने जियो की लांचिंग और बाकी कंपनियों के मुकाबले सबसे सस्ता टैरिफ प्रस्तुत किया। उस समय लांच के दौरान मुकेश ने कहा था कि मोबाइल इंटरनेट मानव विकास का एक बहुत बड़ा साधन होने जा रहा है और हम अपने आपको भाग्यशाली समझते हैं कि 125 करोड़ की आबादी के विकास का भागीदार बनने जा रहे हैं।

यह ठीक उसी तरह का प्रयोग था, जो धीरूभाई ने आरआईएल की नींव रखकर की। आज आरआईएल देश की सबसे बड़ी कंपनी है जबकि जियो का वैल्यूएशन महज चार साल में 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है।

जियो की सफलता ने धीरूभाई के शुरुआती दिनों की याद दिलाई

जियो की लांचिंग और उसकी सफलता ने धीरूभाई के शुरुआती दिनों की याद दिला दी। जियो के स्पेक्ट्रम को एक कम जानी पहचानी कंपनी इंफोटेल ब्रॉडबैंड ने खरीदा था। कुछ ही घंटों बाद इसका अधिग्रहण कर लिया। तीन साल से ही कम समय में ट्राई ने नियमों में परिवर्तन कर दिया और यह कहा कि डाटा के साथ वाइस कॉल के लिए स्पेक्ट्रम का प्रयोग किया जाए। अगर यह प्रावधान ऑक्शन के समय किया गया होता तो पब्लिक ऑडिटर्स का अनुमान है कि इसकी कुल कीमत 2.7 अरब डॉलर से 533 मिलियन डॉलर ज्यादा होती।

शुरू में तो बीटा टेस्टिंग के दौरान इसकी सेवा ग्राहकों के लिए मुफ्त में थी। जिसके कारण अन्य नेटवर्क प्रोवाइडरों ने जियो पर अव्यवहारिक तरीके से व्यापार करने का आरोप लगाया। हालांकि जियो ने इस आरोप को खारिज कर दिया। परंतु इसका नतीजा यह हुआ कि सेल्युलर ऑपरेटरों में प्राइस वार शुरू हो गया। अनिल के मालिकाना हक वाली रिलायंस इंफोकॉम जो पहले से ही संकट से गुजर रही थी और भी मुश्किल में आ गई।

टेलीकॉम में मुकेश ने अनिल को एक प्रतिद्वंदी माना

मुकेश की रणनीति से वाकिफ एक व्यक्ति के अनुसार उन्हें यह पता था कि जियो उनके भाई की टेलीकॉम कंपनी को कुचल कर रख देगी। इस व्यक्ति के अनुसार मुकेश अंबानी ने अनिल को एक छोटे भाई के तौर पर नहीं बल्कि एक प्रतिद्वंदी के रूप में देखा। नतीजा यह हुआ कि जियो आकाश की उंचाई पर चढ़ता गया और रिलायंस कम्युनिकेशन को साल 2019 में दिवालिया के लिए आवेदन करना पड़ा। यह मामला अदालत में पहुंचने के बाद अनिल अंबानी की छवि एक बिजनेसमैन के रूप में धूमिल हो चुकी थी। अनिल को हिरासत में लेने के पहले सुलह की कोशिश की गई और दोनों भाई एक डील पर पहुंच गए।

इसके बारे में प्रेस नोट जारी कर अनिल ने अपने बड़े भाई को पारवारिक मूल्यों की रक्षा करनेवाला बताया।

नरेंद्र मोदी का राज मुकेश के लिए सौभाग्यशाली साबित हुआ

जानकार लोग बताते हैं कि इसके बदले में अनिल अंबानी ने कंपनी की आफिस बिल्डिंग 99 साल की लीज को सरेंडर कर दिया। प्रेस नोट में अनिल का कमेंट था, लेकिन इसकी सामग्री से यह स्पष्ट था कि मुकेश की ओर से इसे जारी किया गया था। नरेंद्र मोदी का राज मुकेश के लिए काफी सौभाग्यशाली साबित हुआ है। क्योंकि जिस भारत को मोदी आधुनिक और इनवेस्टमेंट फ्रेंडली बनाना चाहते हैं, उसका मुकेश की कंपनी अच्छी तरह से दोहन कर रही है।

मोदी से मिलने के लिए मुकेश को कोई अपॉइंटमेंट नहीं लेनी होती है

जानकार बताते हैं कि मुकेश अंबानी ने मोदी से सबंध में स्थापित करने की शुरुआत 1990 में कर दी थी जब वे पार्टी के छोटे मोटे कार्यकर्ता थे। मुकेश के परिवारिक मित्र यह भी बताते हैं कि उन्हें कभी मोदी से मिलने के लिए दरखास्त नहीं करनी पड़ती बल्कि मोदी समय-समय पर उन्हें अपने आवास पर जरूरी सलाह मशविरा के लिए बुलाते रहते हैं।

मोदी की राष्ट्रवादी नीतियों को आगे बढ़ाते हैं मुकेश

पिछले साल जब मोदी सरकार ने मुसलिम बहुल राज्य कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया तो उसके बाद ही रिलायंस ने अपने टॉप 25 अधिकारियों को जम्मू कश्मीर भेज कर वहां निवेश की संभावनाओं को तलाशने के काम पर लगा दिया। मुकेश हमेशा उसी पहल को आगे बढ़ाते हैं जो मोदी की राष्ट्रवादी नीतियों में शामिल रहती है। व्यवसायिक सर्कल में मुकेश की सफलता ने लोगों में खुशी और डर दोनों का माहौल पैदा किया है।

मुंबई में हाल ही में संपन्न एक मीटिंग में एक बहुत बड़े वकील ने भारत के सबसे अमीर व्यक्ति पर कुछ भी टिप्पणी करने से यह कह कर मना कर दिया कि दीवारों के भी कान होते हैं।



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