कई सरकारी बैंकों का होगा प्राइवेटाइजेशन, पंजाब एंड सिंध बैंक, आईओबी और बैंक ऑफ महाराष्ट्र हो सकते हैं - SAARTHI BUSINESS NEWS

Business News, New Ideas News, CFO News, Finance News, Startups News, Events News, Seminar News

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Wednesday, June 3, 2020

कई सरकारी बैंकों का होगा प्राइवेटाइजेशन, पंजाब एंड सिंध बैंक, आईओबी और बैंक ऑफ महाराष्ट्र हो सकते हैं

छोटे सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय के बाद सरकार ने एक और फैसला किया है। खबर है कि अब विलय से बचे हुए छोटे बैंकों का प्राइवेटाइजेशन किया जाएगा। अगर यह फैसला पूरा होता है तो संभावित रूप से उस राष्ट्रीयकरण की शुरुआत होगी, जो 1969 में बैंकों में की गई थी। पहले चरण के संभावित बैंकों में पंजाब एंड सिंध बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) का समावेश हो सकता है।

नीति आयोग की ओर से भेजा गया है प्रस्ताव

सूत्रों के अनुसार सरकार का एक चुनिंदा समूह इस बारे में प्रस्ताव पर चर्चा कर रहा है। यह प्रस्ताव नीति आयोग की ओर से आया है। कहा जा रहा है कि भविष्य में करदाताओं द्वारा बेलआउट को रोकने की प्रक्रिया का यह हिस्सा होगा। नीति आयोग ने सरकार को इस तरह की सलाह दी है। नीति आयोग ने कहा है कि बैंकिंग सेक्टर में लांग टर्म प्राइवेट कैपिटल को मंजूरी दी जाए। यह भी सलाह दी गई है कि चुनिंदा औद्योगिक हाउसों को बैंकिंग लाइसेंस दिया जाए। साथ ही यह कैविएट भी उनसे लिया जाए कि वे समूह की कंपनियों को कर्ज नहीं देंगे।

सरकारी बैंक की ओनरशिप 1970 के एक्ट के तहत चलती है

बताया जा रहा है कि इस प्रस्ताव की चर्चा सरकार के उच्च स्तर पर की गई है। सूत्रों ने कहा कि कुछ बैंकों के डी-नेशनलाइजेशन को लेकर चर्चा जरूर हो रही है, पर अभी तक कोई फैसला इस पर नहीं हुआ है। चर्चा को तब फाइनल माना जाएगा, जब बैंक राष्ट्रीयकरण एक्ट को सुधारा जाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक के यूनिवर्सल बैंकिंग लाइसेंस के दिशानिर्देशों के मुताबिक बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग में 10 प्रतिशत तक के निवेश की मंजूरी है, लेकिन वे बैंक चलाने के लिए एलिजिबल एंटाइटल्स नहीं हैं। सरकारी बैंकों की ओनरशिप और प्रशासन बैंकिंग कंपनीज एक्ट 1970 के तहत चलाया जाता है।

हाल के समय में 3 लाख करोड़ रुपए का निवेश सरकारी बैंकों में हुआ है

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने इंडस्ट्री के सभी सेगमेंट को खोलने के सरकार के उद्देश्य की घोषणा की थी। इसमें प्राइवेट कैपिटल के लिए स्ट्रेटिजिक सेक्टर का भी समावेश था। पिछले कुछ सालों में सरकार ने करीबन 3 लाख करोड़ रुपए का निवेश सरकारी बैंकों में किया है। यह निवेश इन बैंकों के एनपीए से निपटने के लिए किया गया है। यही नहीं कुछ बैंकों की हालत इतनी खराब हो गई है कि आरबीआई को उन बैंकों को पीसीए में डालना पड़ा।

2019 के पहले 11 सरकारी बैंक पीसीए में थे

पीसीए तब होता है जब बैंकों के एनपीए बढ़ जाएं।उनकी बैलेंसशीट में तनाव दिखे, पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सीएआर) में अंतर हो। इससे बैंक न तो नई शाखा खोल सकते हैं, न उधारी दे सकते हैं और न ही कोई और नया काम कर सकते हैं। जनवरी 2019 से पहले 11 सरकारी बैंक पीसीए के दायरे में थे। हालांकि बाद में कई बैंक सुधरने पर इससे से बाहर निकल गए। बता दें कि इससे पहले सरकार ने कई बैंकों के विलय का फैसला लिया था। इसमें देना बैंक और विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा में कर दिया गया था।

बाकी के 10 बैंक का के विलय में जिसमें ओबीसी और यूनाइटेड बैंक का विलय पंजाब नेशनल बैंक में किया गया है। सिंडीकेट बैंक और कैनरा बैंक मिलकर चौथे सबसे बड़ा सरकारी बैंक बनेंगे। इसी तरह आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक का विलय यूनियन बैंक में किया गया जिससे यह पांचवां सबसे बड़ा बैंक बन गया है। इसी तरह अलाहाबाद बैंक और इंडियन बैंक का भी विलय कर दिया गया है।


No comments:

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages