नई दिल्ली। कोविड महामारी के प्रकोप के बाद, भारत में एमएसएमई, स्टार्ट-अप और उद्यमियों के मानसिक स्वास्थ्य, एवं उद्यमियों की चिंताओं व उसके व्यावसायिक दुष्परिणामों पर द्धशश्चद्गह्नह्वह्म्द्ग.ष्शद्व एवं पीएचडी चैंबर एंड कॉमर्स ऑफ इंडिया के सहयोग से विचार विमर्श किया गया जिसमे भारत के प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित डॉक्टरों व साइकोलोजिस्ट ने और शीर्षस्थ उद्यमियों ने भाग लिया एवं जिसकी मेजबानी hopequre.com और पीएचडी चैंबर एंड कॉमर्स ऑफ इंडिया द्वारा की गई।
कोविड 19 महामारी ने सभी को मानसिक रूप से प्रभावित किया है। भारत में लगभग 20 करोड़ लोग या हर सात भारतीयों में से एक 2019 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीस स्टडी के अनुसार मानसिक बीमारी से प्रभावित हैं। इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के सर्वेक्षण के अनुसार लॉकडाउन 1.0 के दौरान मानसिक बिमारियों के मामलों में 20 फीसदी की वृद्धि हुई। 2019-20 में लगभग आठ करोड़ उद्यमी और व्यवसायी अप्रैल 2020 तक घटकर लगभग छह करोड़ हो गए, जबकि मार्च 2019 में औसत रोजगार चालीस करोड़ से घटकर अप्रैल 2020 में अठ्ठाइस करोड़ हो गया। व्यवसाय व रोजगार की कमी का सीधा असर मानसिक स्वस्थ्य पर पड़ता है जिसको नजऱअंदाज़ करते हुए, भारत सरकार जीडीपी का सिर्फ 1.15 फीसदी ही स्वास्थ्य पर खर्च करती है जबकि सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए मौजूदा बजट में सिर्फ 40 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
यह भी पढ़ेंः- कोरोना वैक्सीन की उम्मीद से 22 अरब डॉलर पहुंची इन भाईयों की संपत्ति
कोविड 19 के प्रकोप के बाद भारत में हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को एक नए तरीके से बुनियादी जरूरत के रूप में महसूस किया गया है और इस दौरान भारत में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली सहित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे को पुनर्जीवित करने का एक नया अवसर मिला है। कोविड 19 लॉकडाउन के दौरान हमारे एमएसएमई, उद्यमियों और स्टार्ट-अप संस्थापकों को असामयिक तनाव, व्यवसाय सबंधी एंग्जायटी, डिप्रेशन व अन्य मानसिक स्वास्थ्य से संबधित चिंताओं का सामना करना पड़ा।
hopequre.com के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी विवेक सागर ने बताया कि आमतौर पर एमएसएमई, उद्यमियों और स्टार्ट-अप संस्थापकों का सवयं का स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जिसे वो नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि व्यवसायिक व्यक्ति के जीवन में स्वयं की देखभाल के अतिरिक्त कई अन्य ज्वलंत समस्याओं की प्राथमिकता होती है। हालांकि, यह ऐसे बहादुर दिल हैं जिन्होंने इतने कठिन कोविड काल समय के दौरान आत्मनिर्भर भारत की सरकार की पहल का सबसे पहले समर्थन करने का साहस किया है।"
hopequre.com के एमबीबीएस, एमडी - मनोचिकित्सा एवं वरिष्ठ सलाहकार मनोचिकित्सक डॉक्टर एडी गोयल ने बताया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को सिर्फ डिप्रेशन, एंग्जायटी, कार्यालय संबंधी तनाव और चिंता के कारण प्रति वर्ष अनुमानत: एक ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है। भारत में स्थिति बेहतर नहीं है। भारत के एमएसएमई एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जूझ रहे हैं और साथ ही साथ उनमें से कई असामयिक तनाव व डिप्रेशन के कारण मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह ले रहे है। भारत के कई उद्यमी अपने कर्मचारियों को कार्यालय वापस लाने और उनका उत्साह बरकऱार रखने के लिए साइकोलोजिस्ट व कॉर्पोरेट कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का सहारा ले रहे हैं।
यह भी पढ़ेंः- दिवाली के बाद कितने हो गए पेट्रोल और डीजल के दाम, फटाफट जानिए नई कीमत
hopequre.com में एक विशेषज्ञ सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉ पिंकी गोस्वामी ने कहा कि विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक से मदद मांगना कमजोरी का संकेत नहीं है, बल्कि अवास्तविकता है और यह उत्पादकता को बनाए रखने में मदद करेगा। उन्होंने कहा, इससे पहले कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर लोगों को साइकोलोजिस्ट की मदद लेनी चाहिए क्योंकि एक स्वस्थ मन ही सफलता की कुंजी होगा।
पीएचडीसीसीआई की एमएसएमई समिति के अध्यक्ष मोहित जैन ने इस पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे एमएसएमई इस अवसर का लाभ उठाने के लिए उत्साहित हैं कि भारत के प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ काम पर मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं को संभालने के लिए सर्वोत्तम रणनीतियाँ बता रहे हैं और भारत में उद्यमियों के मानसिक स्वास्थ्य के व्यक्तिगत और व्यावसायिक मोर्चों पर प्रभाव का विश्लेषण कर रहे हैं।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/38KDG8s
No comments:
Post a Comment