नई दिल्ली: यूक्रेन में इस समय कई भारतीय छात्र फंसे हुए हैं और मदद का इंतजार कर रहे हैं, ताकि भारत वापस लौट सकें। यूक्रेन में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई () के लिए जाते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि करीब 18 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र-छात्राएं यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं, रूस में 14 हजार के करीब भारतीय छात्र हैं। इस तरह रूस और यूक्रेन में 32 हजार के करीब भारतीय स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध () के बीच ये स्टूडेंट्स अब भारत लौटना चाहते हैं। इस बीच अब प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने निजी क्षेत्र से मेडिकल एजुकेशन (Medical Education) में निवेश करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट सेक्टर (Private Sector) को बड़े स्तर पर इस क्षेत्र में निवेश करने की जरूरत है। मेडिकल एजुकेशन में निवेश करे निजी क्षेत्र पीएम ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए कहा, 'क्या हमारा निजी क्षेत्र बड़े स्तर पर इस फील्ड में नहीं आ सकता, क्या हमारी राज्य सरकारें इस प्रकार के काम के लिए जमीन देने में उम्दा नीतियां नहीं बना सकतीं, जिससे अधिकतम डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ हमारे यहां तैयार हों। इतना ही नहीं हम दुनिया की मांग भी पूरा कर सकते हैं।' ब्लॉक स्तर तक हों क्रिटिकल हेल्थकेयर सुविधाएं पीएम ने कहा, 'जैसे-जैसे हेल्थ सर्विस की डिमांड बढ़ रही है, उसके अनुसार ही हम स्किल्ड हेल्थ प्रोफेशनल्स तैयार करने का भी प्रयास कर रहे हैं। इसलिए बजट में हेल्थ एजुकेशन और हेल्थकेयर से जुड़े ह्युमेन रिसोर्स डेवलपमेंट के लिए पिछले साल की तुलना में बड़ी वृद्धि की गई है।' पीएम ने आगे कहा, 'हमारा प्रयास है कि क्रिटिकल हेल्थकेयर सुविधाएं ब्लॉक स्तर पर हों, जिला स्तर पर हों, गांवों के नज़दीक हों। इस इंफ्रास्ट्रक्चर को मैंटेन करना और समय-समय पर अपग्रेड करना जरूरी है। इसके लिए प्राइवेट सेक्टर और दूसरे सेक्टर्स को भी ज्यादा ऊर्जा के साथ आगे आना होगा।' डॉक्टर बनने विदेश क्यों जाते हैं भारतीय स्टूडेंट्स एक सवाल यह भी सामने आता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र पढ़ाई करने के लिए विदेश क्यों जाते हैं, जबकि भारत में भी मेडिकल की अच्छी पढ़ाई होती है। आइए समझते हैं। भारत में एमबीबीएस करने के लिए नीट (NEET) की परीक्षा पास करनी होती है। देश में हर साल लाखों स्टूडेंट्स यह परीक्षा देते हैं। इन स्टूडेंट्स में से कई स्टूडेंट्स नीट की कटऑफ लिस्ट में तो आ जाते हैं, लेकिन उन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिल पाता है। अब अगर ये स्टूडेंट्स निजी कॉलेजों से डॉक्टर की पढ़ाई करते हैं, तो इन्हें एक करोड़ रुपये या इससे अधिक तक की भारी-भरकम फीस चुकानी पड़ सकती है। कोई भी मध्यम वर्गीय परिवार इतनी फीस वहन नहीं कर सकता। सरकारी कॉलेज नहीं मिल पाने और प्राइवेट कॉलेज की भारी-भरकम फीस के बावजूद अगर कोई स्टूडेंट अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा करना चाहता है, तो उसके पास एक ही विकल्प बचता है। वह यूक्रेन, रूस, फिलीपींस और बांग्लादेश जैसे देशों से डॉक्टर की पढ़ाई करने की योजना बनाते हैं। इन देशों में अपेक्षाकृत काफी कम फीस में डॉक्टर की पढ़ाई हो जाती है। यही कारण है कि भारत से बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स अपनी डॉक्टर की पढ़ाई करने विदेशों का रुख करते हैं। विदेशों में सिर्फ 20 लाख में बन जाते हैं डॉक्टर कई देशों में डॉक्टर की पढ़ाई का खर्च काफी कम है। रूस में स्टूडेंट्स सिर्फ 20 लाख रुपये खर्च करते ही डॉक्टर बन जाते हैं। बांग्लादेश में डॉक्टर बनने का खर्च 25 से 40 लाख रुपये है। वहीं, फिलीपींस में एमबीबीएस कोर्स का खर्च 35 लाख है। यूक्रेन की बात करें, तो यहां मेडिकल लाइन में अधिक प्रतिस्पर्द्धा नहीं है। यूक्रेन की मेडिकल डिग्री की मान्यता भारत के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ, यूरोप और ब्रिटेन में है। यहां के कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई की सालाना फीस 4-5 लाख रुपये है।
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