नई दिल्ली: बचपन में यूं तो मुझे लोगों और संगे संबंधियों के घर जाना बहुत पसंद नहीं था, लेकिन जब बात नानी के घर की होती थी तो वहां जाने की जिद कर बैठती थी। नानी से ज्यादा उस 'लाल शरबत' का प्यार मुझे उस ओर खींच लेता था। सुर्ख लाल रंग का ताज़गी से भरा, मीठा शरबत जब गले से उतरता था तो सिर्फ प्यास ही नहीं बल्कि रूह तक ठंडा हो जाता था। तेज़ गंध, चिपचिपी सी वो लाल रंग की चीज मेरे भी घर में आती थी, लेकिन मां सिर्फ मेहमानों के आने पर ही वो लाल शरबत बनाती थी। वो रूह अफजा (Rooh Afza), जो मेरे बचपन के साथ-साथ कईयों के बचपन की यादों में है। उसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है।
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Thursday, May 18, 2023
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पुरानी दिल्ली का वो 'लाल शरबत', जिसने आजादी भी देखी और तीन देशों का बंटवारा भी, बीत गए 117 साल लेकिन नहीं बदला स्वाद
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