नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने गृह मंत्रालय ( Home Ministry ) के उस आदेश को कायम रखा है, जिसमें कहा गया है कि लॉकडाउन सभी कंपनियों को अपने कर्मचारियों को पूरी सैलरी देनी होगी। वहीं कोर्ट ने मंत्रालय से नीतिगत फैसले के बारे में बताने के बारे में कहा है। साथ ही इस बारे में भी जानकारी देने को कहा है कि आखिर बिना किसी कटौती के वेतन देने के आदेश पर रोक क्यों ना लगाई जाए।
जस्टिस एनवी रमाना की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्तों में जवाब देने के आदेश जारी किए है। आपको बता दें कि सरकार के आदेश के बाद कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। आपको बता दें कि लॉकडाउन के बाद 29 मार्च को गृह मंत्रालय की ओर से सर्कुलर हुआ था कि लॉकडाउन के दौरान भी प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारियों को पूरी सैलरी देनी पड़ेगी। ऐसा करने पर संबंधित कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन ने डाली थी याचिका
मंत्रालय के आदेश के बाद लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के साथ 41 कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी कि सरकार की ओर से जारी किए गए आदेश में कंपनियों का ध्यान नहीं किया गया। कंपनियों की याचिका के अनुसार केंद्र सरकार को इस बात पर भी विचार करने की जरुरत इस आदेश के बाद कंपनियों पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? क्या कंपनियों की आर्थिक क्षमता है कि वो इतने दिनों तक कर्मचारियों को सैलरी देने में सक्षम हैं या नहीं? कंपनियों के अनुसार इस आदेश को पालन करने में कई कंपनियों के बंद होने का खतरा है। इससे बेरोजगारी में इजाफा होने के साथ इकोनॉमी में बुरा असर पड़ेगा।
एमएसएमई की ओर से डाली गई याचिका
वहीं माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंडस्ट्रीज की ओर से दाखिल की गई याचिका में कहा कि लॉकडाउन में पूरी सैलरी देने का आदेश संविधान के अनुसार नहीं है। याचिका के अनुसार यह आदेश कंपनियों पर मनमाने तरीके से थोपा जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों को इस मामले में छूट दी जानी चाहिए। इस तरह से किसी भी तरह का किसी एक पक्ष पर दबाव डालना अनुचित है। लुधिया हैंड टूल्स एसोसिएशन के अनुसार गृह मंत्रालय का आदेश कंपनियों के कारोबारी अधिकारों के तहत संविधान के धारा 19(1)(जी) का उल्लंघन है।
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