भारतीय अर्थव्यवस्था में आजादी के बाद चौथी सबसे गंभीर आर्थिक मंदी की आशंका, रिकवरी में लग जाएगा 3-4 साल का वक्त : क्रिसिल - SAARTHI BUSINESS NEWS

Business News, New Ideas News, CFO News, Finance News, Startups News, Events News, Seminar News

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Wednesday, May 27, 2020

भारतीय अर्थव्यवस्था में आजादी के बाद चौथी सबसे गंभीर आर्थिक मंदी की आशंका, रिकवरी में लग जाएगा 3-4 साल का वक्त : क्रिसिल

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने मंगलवार को कहा कि भारत अबतक की सबसे खराब मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है। उसने कहा कि आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण (Liberalisation) के बाद यह पहली मंदी है जो कि सबसे भीषण है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप पर रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है। क्रिसिल ने अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी की गिरावट की आशंका जताई है।

पहली तिमाही में विकास दर में हो सकती है 25 फीसदी तक की गिरावट

क्रिसिल ने भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के आकलन के बारे में कहा कि पहली तिमाही में 25 फीसदी की बड़ी गिरावट की आंशका है। रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, वास्तविक आधार पर करीब 10 फीसदी जीडीपी स्थायी तौर पर खत्म हो सकती है। ऐसे में महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी गई है, उसके मुताबिक रिकवरी में कम से कम 3-4 साल का वक्त लग जाएगा।

क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कृषि के मोर्चे पर राहत है

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले 69 साल में देश में केवल तीन बार-वित्त वर्ष 1957-58, 1965-66 और 1979-80 में मंदी आई है। इसके लिए हर बार कारण एक ही था और वह था मानसून का झटका। इस वजह से खेती-बाड़ी पर काफी बुरा असर पड़ा और अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ है। क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ अलग है क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा। यह झटके को कुछ मंद कर सकता है।

कोरोना संक्रमित राज्यों में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक रहेंगी प्रभावित

क्रिसिल के अनुसार, लाॅकडाउन के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई। न केवल गैर कृषि कार्यों बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका है। इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा। रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को कामकाज मिला हुआ है। उन राज्यों में भी आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं जहां कोविड-19 के मामले ज्यादा हैं और उससे निपटने के लिए लंबे समय तक बंद जारी रखा जा सकता है। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि इन सबका असर आर्थिक आंकड़ों पर दिखने लगा है और यह शुरूआती आशंका से कहीं अधिक है।

पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सालाना जीडीपी में औसतन 3 प्रतिशत की कमी का अनुमान

मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई। अप्रैल में निर्यात में 60.3 प्रतिशत की गिरावट आई और नए दूरसंचार ग्राहकों की संख्या 35 प्रतिशत कम हुई है। इतना ही नहीं रेल के जरिए माल ढुलाई में सालाना आधार पर 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। देश में अबतक 68 दिन का लॉकडाउन हो चुका है। एस एंड पी ग्लोबल के अनुसार एक महीने के लॉकडाउन से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सालाना जीडीपी में औसतन 3 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। चूंकि भारत में एशिया के अन्य देशों की तुलना में बंद की स्थिति अधिक कड़ी है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव अधिक व्यापक होगा।

भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 2020-21 में 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी

क्रिसिल का अनुमान है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 2020-21 में 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी। क्रिसिल के अनुसार इससे पहले 28 अप्रैल को हमने वृद्धि दर के अनुमान को 3.5 प्रतिशत से कम कर 1.8 प्रतिशत किया था। उसके बाद से स्थिति और खराब हुई है। हमारा अनुमान है कि गैर-कृषि जीडीपी में 6 प्रतिशत की गिरावट आगी। हालांकि कृषि से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है और इसमें 2.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। सरकार के 20.9 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज बारे में क्रिसलि ने कहा कि इसमें अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिए अल्पकालीन उपायों का अभाव है लेकिन कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं, जिनका असर मध्यम अवधि में देखने को मिल सकता है।




No comments:

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages