वित्तीय वर्ष 2020 के जनवरी-मार्च तिमाही और पूरे साल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े को सरकार शुक्रवार को जारी करेगी। यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड-19 से लॉकडाउन के बाद यह पहली बार जारी हो रहा है। हालांकि जीडीपी में पांच बातों पर सबकी नजर होगी। इसमें मैन्युफैक्चरिंग, कोर सेक्टर, औद्योगिक गतिविधियां, रोजगार और एक्सपोर्ट का समावेश है। यह सभी जीडीपी के केंद्र में होंगे।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर प्रभावित होने से होता है बुरा असर
तमाम रेटिंग एजेंसियों ने इस बीच पिछले दो महीने में देश की जीडीपी को लेकर अलग-अलग तरह का अनुमान भी लगाया है। शुक्रवार को आनेवाले जीडीपी आंकड़े के जिन प्रमुख बिंदुओं पर नजर रहेगी उसमें सबसे पहले मैन्युफैक्चरिंग होगा। मोदी सरकार के सामने मैन्युफैक्चरिंग को सुधारने की सबसे बड़ी चुनौती पहले से ही है। मैन्युफैक्चर सेक्टर की कमजोर वृद्धि दर भारत के निर्यात की संभावनाओं पर असर डालती है। साथ ही रोजगार भी कम पैदा होने के अवसर होते हैं।
अप्रैल में बेरोजगारी दर 23.5 प्रतिशत पर थी
अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ 0.2 प्रतिशत गिरी थी। इससे जीडीपी 4.7 प्रतिशत पर चली गई थी। यह 27 तिमाहियों में सबसे कम वृद्धि दर रही थी। मार्च के आईआईपी आंकड़े से पता चलता है कि मैन्युफैक्चरिंग में 20 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इसी तरह रोजगार की बात करें तो मार्च के बाद से इस पर सबसे बुरा असर हुआ है। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि मार्च में बेरोजगारी दर 8.75 प्रतिशत से गिरकर अप्रैल में 23.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
अप्रैल महीने में 12.2 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा
अप्रैल महीने में ही 12.2 करोड़ भारतीयों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक उसमें से 20-30 साल की उम्र वाले 2.7 करोड़ युवाओं को भयानक स्थितियों का सामना करना पड़ा है। यही नहीं, प्रवासी कामगारों के वापस गांव लौट जाने से अर्थव्यवस्था को शुरू करने में सबसे बड़ा जोखिम है। लेबर पार्टिसिपेशन रेट भी इस समय दिक्कत में है। देश की 90 प्रतिशत वर्कफोर्स जो इंफार्मल सेक्टर में कार्यरत थी, उसे इसका सबसे बड़ा सामना करना पड़ेगा। उधर मुख्य इंफ्रा इंडस्ट्रीज ने मार्च में 7.6 प्रतिशत की गिरावट दिखाई है। यह 15 साल के निचले स्तर पर है।
निर्यात में रिकवरी पर है सबकी नजर
निर्यात की बात करें तो मार्च में यह गिरकर 3.45 प्रतिशत पर आ गया था। निर्यात में रिकवरी तभी होगी, जब कुछ एडवांस्ड इकोनॉमी और बड़े बाजार इस बीमारी से बाहर निकलेंगे। क्रिसिल ने चौथी तिमाही के जीडीपी में वृद्धि दर का अनुमान 0.5 प्रतिशत लगाया है। जबकि इक्रा ने इसी अवधि में 1.9 प्रतिशत का अनुमान लगाया है। रॉयटर्स के पोल के अनुसार 52 अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत तक रहने की बात कही है। यह पिछले आठ सालों में सबसे कमजोर वृद्धि दर होगी।
मार्च से शुरू हुआ था लॉकडाउन
अभी तक जितने भी मैक्रोइनॉमिक इंडीकेटर्स प्रोजेक्ट किए गए हैं, उसमें यही बात निकल कर आई है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर वर्तमान फिस्कल ईयर में निगेटिव रह सकती है। हालांकि भारत ने इस महीने लॉकडाउन में थोड़ी ढील शुरू किया है, लेकिन मार्च के अंतिम हफ्ते से लेकर अब तक लॉकडाउन चार चरण में पहुंच चुका है। जनवरी-मार्च की जीडीपी को बहुत ज्यादा इसलिए भी निगेटिव नहीं कहा जा रहा है क्योंकि भारत ने लॉकडाउन मार्च के अंतिम हफ्ते में शुरू किया था। इसलिए बहुत ज्यादा असर तब तक आर्थिक गतिविधियों पर नहीं पड़ा था।
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