कोरोनावायरस महामारी के कारण किसानों को मक्के का वाजिब दाम मिलना मुहाल हो गया है। इसकी वजह यह है कि मक्के की औद्योगिक मांग खत्म हो गई है। दूसरी ओर मक्के के उत्पादन में नया रिकॉर्ड बना है। मक्का ही नहीं, गेहूं, चावल समेत मोटे अनाजों के उत्पादन में भी इस साल नया कीर्तिमान बनने का अनुमान है। इसके कारण निकट भविष्य में भी मांग बढ़ने की गुंजाइश नहीं दिख रही है।
किसानों ने इस साल मक्के की खेती में ज्यादा दिलचस्पी ली थी
देश में बिहार एक ऐसा सूबा है, जहां साल के तीनों सीजन-खरीफ, रबी और जायद के दौरान मक्के की खेती होती है। लेकिन प्रदेश में मक्के की सबसे ज्यादा पैदावार रबी सीजन में होती है। बिहार में कोसी की कछार की मिट्टी मक्के की पैदावार के लिए काफी उर्वर है। पिछले साल ऊंचा भाव मिलने से किसानों ने मक्के की खेती में इस साल काफी दिलचस्पी ली थी। लेकिन किसानों को पिछले साल के मुकाबले आधे दाम पर इस बार मक्का बेचना पड़ रहा है।
बिहार के मधेपुरा में 1,050 रुपए क्विंटल बिक रहा है मक्का
बिहार के मधेपुरा जिला के महाराजगंज निवासी पलट प्रसाद यादव ने पांच दिन पहले 1,050 रुपए प्रति क्विंटल की दर से मक्का बेचा। यादव ने बताया कि मक्का उगाना इस साल घाटे का सौदा रहा। जिन किसानों ने गेहूं की खेती की थी उनको लाभ हुआ है। गेहूं प्रदेश में 1,850-2,000 रुपये क्विंटल बिक रहा है। लेकिन मक्के की मुश्किल से लागत वसूल हो पा रही है। उन्होंने बताया कि पिछले साल उनके गांव में मक्का 1,600-2,200 रुपये प्रति क्विंटल तक बिका था।
पूर्णिया के गुलाबबाग मंडी में 1,150-1,200 रुपये क्विंटल चल रहा है मक्का
बिहार के पूर्णिया जिला स्थित गुलाबबाग कृषि उपज मंडी मक्के के कारोबार के लिए पूरे देश में चर्चित है। वहां से ट्रक व रेल रूट से देश के दूसरे राज्यों में मक्के की सप्लाई होती है। गुलाबबाग मंडी के एक बड़े कारोबारी के मुंशी सिकंदर चौरसिया ने बताया पिछले साल की तरह इस साल मक्के की मांग नहीं है, इसलिए दाम 1,150-1,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। उन्होंने बताया कि जब रेक लोडिंग होती है, तो दाम थोड़ा ऊंचा हो जाता है।
पिछले साल कैटल फीड, पोल्ट्री फीड उद्योग में मांग बढ़ने से मक्के का आयात करना पड़ा था
मक्के के कारोबारी संतोष गुप्ता ने बताया कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में मांग नहीं के बराबर है और स्टार्च इंडस्ट्री की मांग भी सुस्त है। उन्होंने कहा कि मांग की तुलना में इस साल आपूर्ति ज्यादा है। जबकि पिछले साल देश में कैटल फीड, पोल्ट्री फीड उद्योग की मांग तेज होने के कारण विदेशों से मक्के का आयात करने की नौबत आ गई थी। लेकिन इस बार पशुचारा उद्योग, खासतौर से पोल्ट्री फीड इंडस्ट्री में मक्के की मांग तकरीबन शून्य हो गई है।
पोल्ट्र्री उद्योग में तकरीबन शून्य हो गई है मक्के की मांग
कोरोनावायरस का पोल्ट्री उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इसके कारण अंडे और मुर्गे की कीमत उनकी लागत से कम हो गई है। बिहार के सिवान जिला स्थित भगवानपुर हाट के पोल्ट्री कारोबारी दूधकिशोर सिंह ने बताया कि इस समय एक अंडा पर लागत जहां 3.20 रुपए आता है, वहीं उसकी कीमत तीन रुपए है। 20 पैसे के नुकसान पर अंडा बेचना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि कई सारे पोल्ट्री फॉर्म बंद हो गए हैं।
केंद्र ने फसल वर्ष 2019-20 के खरीफ सीजन के मक्के के लिए एमएसपी 1,760 रुपये क्विंटल तय किया है
केंद्र सरकार ने फसल वर्ष 2019-20 (जुलाई-जून) के खरीफ सीजन के मक्के के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,760 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। बिहार में इस साल यानी 2019-20 में 35 लाख टन मक्के का उत्पादन होने का अनुमान है। यह पिछले साल से करीब 10 फीसदी अधिक है। वहीं, तीसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार देश में 2019-20 में मक्के का रिकॉर्ड 289.8 लाख टन उत्पादन होने की उम्मीद है।
मक्के के कुल उत्पादन का तकरीबन 47 फीसदी से ज्यादा उपयोग पोल्ट्री फीड में होता है
भारत में मक्के के कुल उत्पादन का तकरीबन 47 फीसदी से ज्यादा उपयोग पोल्ट्री फीड में, करीब 14 फीसदी कैटल फीड और करीब 12 फीसदी स्टार्च उद्योग में होता है। एक अनुमान के अनुसार, उत्पादन के करीब 20 फीसदी मक्का का सीधे तौर पर उपभोग किया जाता है ,जबकि सात फीसदी का उपयोग खादय व पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है। देश में कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश समेत कई अन्य प्रांतों में भी मक्के की खेती होती है। अधिकांश राज्यों में मक्के की खेती खरीफ सीजन में होती है।
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