देशव्यापी लाॅकडाउन अपने दूसरे महीने में प्रवेश कर चुका है। अप्रैल माह कृषि उत्पादन का समय होता है। ऐसे में देशभर में लागू लाॅकडाउन ने किसान को काफी नुकसान पहुंचाया है। जहां एक तरफ किसानों को रबी फसलों की कटाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ा वहीं दूसरी तरफ कटी हुई फसलों की आपूर्ति चेन पर असर पड़ा है। किसानों को माल सप्लाई करने में दिक्कत हो रही है। किसानों के लिए यह चिंता का कारण बना हुआ है मांग में तेजी होने के बावजूद आपूर्ति चेन बाधित होने के चलते देशभर के मंडियों तक किसान सामान पहुंचा नहीं पा रहे हैं।
पिछले साल के मुकाबले गेहूं, सरसों, टमाटर और केला की थोक कीमतें कम रहीं
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 में बड़े जिंसों की कीमतों में 2019 की समान अवधि के मुकाबले मिला-जुला रुझान रहा है। गेहूं, सरसों, टमाटर और केला की थोक कीमतें पिछले वर्ष के मुकाबले कम रही हैं, लेकिन आलू और प्याज के थोक मूल्य अप्रैल 2019 के मुकाबले अधिक रहे हैं। पिछले वर्ष के मुकाबले कुछ कमोडिटी (जिंस) की मंडी कीमतें कम रहने की एक वजह उनकी कम मात्रा में आपूर्ति हो सकती है। इसका यह मतलब निकाला जा सकता है कि कीमतें अधिक जरूर रहीं, लेकिन उत्पादकों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। इतना ही नहीं, राज्यों के स्तर पर भी कीमतों में काफी अंतर दिखे, खासकर उन राज्यों में अधिक अंतर दिखा जहां जिंसों की सरकारी खरीद शुरू हो गई थी।
उदाहरण में समझें:उदाहरण के लिए, सरसों की बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2020 अखिल भारतीय औसत थोक मूल्य 4,506.98 रुपए प्रति क्विंटल था, जो कि 2020-21 के लिए 4,425 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक है। लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में किसानों को एमएसपी की दरें नहीं मिलीं, जहां औसत मंडी मूल्य क्रमश: 3,801.4 रुपए प्रति क्विंटल और 3,783.95 रुपए प्रति क्विंटल है। यह मूल्य हालांकि अप्रैल 2019 के औसत मूल्य से लगभग 24 प्रतिशत कम था। हरियाणा एकमात्र राज्य था जहां सरसों औसतन एमएसपी पर बेची गई थी। आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में सरसों औसतन एमएसपी पर बिकी थी। वहीं, गेहूं का राष्ट्रीय औसत थोक मूल्य 1,971.12 रुपए प्रति क्विंटल रहा जो कि एमएसपी 1,925 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक है। हालांकि पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले इस साल 2020 में कीमतें लगभग 2 प्रतिशत कम रहीं।
क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
बता दें कि सरकार हर एक फसल की खरीद के लिए एक मूल्य तय करती है। इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कहते हैं। तय की गई एमएसपी कीमत के नीचे फसल की खरीद नहीं की जाती है। किसानों की आर्थिक मदद के लिए सरकार हर एक सीजन में फसलों का मूल्य निर्धारण करती हैं।
पिछले साल के मुकाबले इस साल आलू के भाव में वृद्धि
अगर सब्जियों की बातें जाय तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, आलू का औसत थोक मूल्य पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 48 प्रतिशत अधिक रहा। इसी तरह, मार्च 2020 के मुकाबले यह 28 प्रतिशत अधिक था। पिछले साल के मुकाबले प्याज का औसत थोक मूल्य 13 प्रतिशत अधिक रहा, लेकिन मार्च 2020 के मुकाबले यह लगभग 26 प्रतिशत कम रहा। अप्रैल 2020 में टमाटर की कीमतें कम हो गईं हैं और यह पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 39 प्रतिशत कम हैं।
मुंबई स्थित इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान के निदेशक और कुलपति महेंद्र देव ने कहा कि इस साल किसानों को टमाटर से ज्यादा लाभ नहीं हुआ है। वहीं, नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि इस साल आलू और प्याज मंडी की आवक का एक बड़ा हिस्सा है और उनकी कीमतें पिछले साल की तुलना में अधिक हैं।
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