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Saturday, June 6, 2020

आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी के सदस्यों ने कोविड महामारी से हुए आर्थिक नुकसान पर जताई चिंता

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान को लेकर चिंता जताई है। इसके मुताबिक इसकी रिकवरी में कई साल लगेंगे। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास दो महीनों के लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ने, high frequency indicatorsद्वारा अनुमानित मांग में गिरावट, निजी खपत और निवेश में गिरावट की चेतावनी दे चुके हैं। इसे बैंकों की ढुलमुल क्रेडिट ग्रोथ में वृद्धि से देखा जा सकता है। एमपीसी का संपादित मिनट्स शुक्रवार को आरबीआई की वेबसाइट पर जारी किया गया था।

विकास को प्राथमिकता देने की जरूरत है

आरबीआई गवर्नर दास ने कहा कि मांग में कमी आने से कुछ समय के लिए आर्थिक गतिविधियों पर भारी दबाव रहेगा। लेकिन वह कृषि में अच्छी फसल के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुनरुद्धार के बारे में आशावादी हैं। दास ने कहा कि नीति का ऑकलन करने में कमजोर विकास की गति, कम जोखिम भरी मुद्रास्फीति को देखते हुए विकास को प्राथमिकता देने की जरूरत है। साथ ही रिकवरी के आगे अच्छी वित्तीय स्थितियों को आश्वस्त करने की जरूरत को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। इससलोगों में विश्वास कायम रहेगा।

कई सदस्य कंज्यूमर सेंटीमेंट, मांग को लेकर चिंतित

अन्य सदस्य भी कंज्यूमर सेंटीमेंट, डिमांड और निजी निवेश में गिरावट को लेकर काफी चिंतित थे। एमपीसी के विचार-विमर्श के बाद डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने कहा कि वास्तव में मेरा मानना है कि नुकसान इतना गहरा और व्यापक है कि इसने भारत के संभावित उत्पादन को नीचे धकेल दिया है। इसकी रिकवरी में वर्षों लग जाएंगे। मौद्रिक नीति के प्रभारी कार्यकारी निदेशक जनक राज निजी निवेश में मांग गिरने को लेकर चिंतित थे।

निवेश और डिमांड प्रभावित होने की आशंका

राज ने कहा, "कुल मांग के भीतर, जबकि निजी खपत को कोरोना से पहले के स्तर से नीचे जाने की संभावना है, उस पर मुझे अधिक चिंता है। निवेश की मांग में कमी कईकारणों से गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना है। कई क्षेत्रों में अतिरिक्त क्षमता पैदा की गई है। इससे निजी क्षेत्र के नए निवेश में बाधा उत्पन्न करने की संभावना है। कमजोर बैलेंस शीट के कारण निवेश गतिविधि भी चुनौती भरी होगी।

निवेश की गतिविधियां प्रभावित हुई हैं

केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा सरकारी खर्च का फोकस भी पूंजीगत खर्च की तुलना में राजस्व खर्च पर होगा। इसलिए निवेश की जो गतिविधियां पिछले 2 महीने में बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं उसमें आगे और इजाफा ही होगा। साल 2020-21 मई में आर्थिक गतिविधियों में और कमी आएंगी। जैसे-जैसे लॉक डाउन हटता जाएगा, सप्लाई लाइन में थोडा सुधार होगा। कोरोना के जैसे पहले वाली डिमांड को उस स्तर पर आने में काफी वक्त लगेगा।

निकट समय में अर्थव्यवस्था की गतिविधियां और प्रभावित हो सकती हैं

उन्होंने यह भी कहा कि निवेश में मांग कम हो सकती है जिससे निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था की गतिविधियां काफी बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं। सदस्य रविंद्र ढोलकिया ने कहा कि भारत की वास्तविक ब्याज दरें अभी भी लगभग 1.2 प्रतिशत से 1.6 प्रतिशत पर बहुत अधिक हैं। ढोलकिया ने 40 आधार अंकों की दर में कटौती के पक्ष में कहा, मेरा मानना है कि वास्तविक नीतिगत दर को सकारात्मक रखने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इतना अधिक नहीं है।

भविष्य में ब्याज की दरों में और कटौती संभव है

आरबीआई गवर्नर ने अपने मीडिया संबोधन में कहा था कि भविष्य में दरों में और कटौती की गुंजाइश होगी। आरबीआई ने महंगाई और विकास पर कोई मार्गदर्शन नहीं दिया। बाहरी सदस्य पामी दुआ "अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर पूर्वानुमान" के बारे में चिंतित थे। उन्होंने औद्योगिक और मैनुफैक्चरिंग नंबर्स में गिरावट का हवाला दिया। दुआ मई में आरबीआई द्वारा किए गए उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण के बारे में चिंतित थे।

इसमें यह दर्शाया गया है कि करंट सिचुऐशन इंडेक्स ऐतिहासिक रूप से कम है जबकि Future Expectations Index आने वाले वर्ष के लिए निराशावादी तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस प्रकार, कंज्यूमर सेंटीमेंट काफी हद तक नीचे गिर गई है।


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