बैंक आपका पैसा डुबा दे, यह कानूनी है लेकिन बैंक का पैसा डूब जाए यह गैर कानूनी है? आपकी डिपॉजिट डूबने पर महज ? मिलेंगे - SAARTHI BUSINESS NEWS

Business News, New Ideas News, CFO News, Finance News, Startups News, Events News, Seminar News

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Saturday, June 6, 2020

बैंक आपका पैसा डुबा दे, यह कानूनी है लेकिन बैंक का पैसा डूब जाए यह गैर कानूनी है? आपकी डिपॉजिट डूबने पर महज ? मिलेंगे

हाल में मोराटोरियम को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है। सवाल यह है कि अगर बैंक ने आपको कर्ज दिया तो वह आपकी प्रॉपर्टी या जो भी कुछ है, वह जब्त कर पैसे ले लेता है। पर आपका जमा पैसा अगर बैंक में डूब जाए तो इस पर आप कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते। आपको एक लाख रुपए की डिपॉजिट गारंटी जरूर मिल सकती है। 12 जून को इस पर सुनवाई होनी है। इस सुनवाई में यह फैसला होगा कि आरबीआई सही है या फिर याचिकाकर्ता।

बैंकों केकंपाउंड इटरेस्ट के भुगतान पर होगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट की बेंच बैंकों को कंपाउंड इंटरेस्ट के भुगतान पर क्या फैसला करती है? इस पर इस मामले में नजर होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस भुगतान पर रोक लगा दी है। अदालत गजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इसमें मोराटोरियम के दौरान ब्याज भुगतान को चुनौती दी गई थी। वह भी ऐसे समय में जब कोविड-19 से लड़ने के लिए नेशनल लॉकडाउन ने कारोबार ठप कर रखा है। केंद्रीय बैंक ने इसके खिलाफ दलील दी और कहा कि यह फाइनेंशियल सिस्टम को अस्थिर कर सकता है। क्योंकि 2.01 लाख करोड़ रुपए की राशि का ब्याज दांव पर है।

जिस बिजनेस के लिए लोन लिया गया, वह बंद हो गया तो कर्ज कैसे चुकेगा

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल ने टिप्पणी की कि ये सामान्य समय नहीं है। न्यायमूर्ति एम.आर. शाह ने कहा, "सरकार एक तरफ मोरेटोरियम की पेशकश कर रही है।दूसरी ओर ब्याज पर कुछ भी नहीं दे रही है। यह हानिकारक है।" जस्टिस अशोक भूषण ने इस मामले में दो मुद्दों की पहचान की- लोन पर मोराटोरियम और ब्याज पर ब्याज। यह बहस करना उचित है कि जब जिस व्यवसाय के लिए यह लोन लिया गया था, वह महामारी के कारण बंद हो तो इसे कैसे चुका सकता है।

आरबीआई ने 31 अगस्त तक मोराटोरियम की सुविधा दी है

स्थिति की भयावहता को देखते हुए आरबीआई ने 31 अगस्त तक भुगतान पर मोराटोरियम लगाने की घोषणा की। लेकिन नियामक ने कहा कि समय के दौरान देय ब्याज को भरना होगा।इसे समय की अवधि में बांटा जा सकता है। जब यह भुगतान पर राहत दे सकता है तो यह ब्याज क्यों नहीं माफ कर रहा है। एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि बैंक जिन पैसों को कारोबार चलाने, घरों और कारों को खरीदने के लिए उधार देते हैं वो उनके नहीं होते हैं। वह पैसा तो जमाकर्ताओं का होता है। यह जमा पैसा वेतन भोगियों और पेंशनभोगियों की होताहै। इसमेंसेवानिवृत्त पुलिसकर्मी, शिक्षक, नौकरशाह और न्यायाधीश शामिल हैं। ब्याज दरों में गिरावट के बावजूद, भारतीयों के100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की डिपॉजिट बैंकों में अभी भी है।

पीएमसी बैंक में खाताधारकों का पैसा अभी तक नहीं मिला

बैंकों के काम करने का सिद्धांत यही है कि वह बचतकर्ताओं से पैसा लेते हैं और उन्हें लोन स्वरूप देते हैं, जिन्हें जरूरत है। यही चक्र चलता रहता है, जिससे बैंक चलता है। पर क्या होता है जब उधार लेने वाला पैसा चुका नहीं पाता है। जरा कुछ महीने पीछे जाइए और याद कीजिए पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक की शाखाओं के सामने लंबी-लंबी लगी लाइनों का, जो बैंक में पड़े अपने ही पैसे निकालने के लिए तरस रहे थे। अस्पताल में उनके अपने पैसे के अभाव में दम तोड़ रहे थे।

क्या बैंक सिर्फ कमाने के लिए बैठे हैं?

तर्क यह है कि बैंकों द्वारा कंपाउंड इंटरेस्ट चार्ज करना अनुचित है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी, "वे कह रहे हैं कि बैंकों की लाभप्रदता ही सब कुछ है। क्या बैंकों को सिर्फ कमाना चाहिए और देश भले ही गर्त में चला जाये? एक बैंक का लाभ है जो शेयरधारकों को जाता है। दूसरा जमाकर्ताओं के प्रति उसका दायित्व भी है। मिलनेवाला ब्याज का हर पैसा लाभ नहीं है, केवल इसका एक हिस्सा है। जब ब्याज माफ किया जाता है तो बैंक अपने जमाकर्ताओं को भुगतान कैसे करता है?

बैंकों के काफी सारे लोन डिफॉल्ट में हैं

कोविड-19 के पहले भी बैंकिंग उद्योग की सेहत नाजुक रही है। वर्षों से खराब नीतियों के कारण भारी संख्या में डिफ़ॉल्ट हुआ, जिससे भारतीय बैंकिंग सबसे खराब व्यापार करने वालों की श्रेणी में आ गए। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि इंडस्ट्री को फिस्कल ईयर 2018 में 32,438 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। फिस्कल ईयर 2019 में कुल 23,397 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। कई बैंकों को बचाए रखने के लिए सरकार को पिछले कुछ सालों में करीब 3 लाख करोड़ रुपए का निवेश करना पड़ा।

क्रेडिट और डेबिट में संतुलन जरूरी है

बैंकिंग उधारकर्ताओं और जमाकर्ताओं के प्रबंधन का एक संतुलन बनाये रखने का कार्य है। यह पहचानना आवश्यक है कि दोनों घटक यहां लाभ कमाने के लिए हैं ना कि चैरिटी करने के लिए। अगर इस समीकरण में गड़बड़ी होती है तो इसका नतीजा लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। द बाइबिल ऑफ बैंकिंग- लोम्बार्ड स्ट्रीट में वाल्टर बागेहॉट लिखते हैं, कई चीजें जो सरल लगती हैं। जो दृढ़ता से स्थापित होने पर अच्छी तरह से काम करती हैं, उन्हें नए लोगों के बीच स्थापित करना मुश्किल है। उन्हें लोगों को समझाना बहुत आसान नहीं है। जमा बैंकिंग कुछ इसी इस तरह की है।


No comments:

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages