बैंकों में पैसा रखना अब धीरे-धीरे पुराने दिनों की बात हो सकती है। फिक्स डिपॉजिट (एफडी) की दरहाल के महीनों में काफी कम हो गई है। कुछ बैंको की शॉर्ट टर्म दर तो बचत खाते की ब्याज दर के बराबर हो गई हैं। इस वजह से अब ग्राहक अपने पैसों को बचत खाते या एफडी में रखने की बजाय कहीं और निवेश कर सकते हैं।
कम क्रेडिट ग्रोथ और ज्यादा लिक्विडिटी से शुरू हुई दिक्कत
सरप्लस लिक्विडिटी और कम क्रेडिट ग्रोथ ने बैंकों को कम और ज्यादा दिनों की दोनों जमाओं की दरों में कटौती करने के लिए मजबूर किया है। इस वजह से बचत करनेवाले लोग अब डेट मार्केट, म्यूचुअल फंड या यहां तक कि इक्विटी असेट्स जैसे जोखिम भरे साधनों में जा रहे हैं। पिछले वित्त वर्ष में डिपॉजिट ग्रोथ काफी कम गई थी। चालू वित्त वर्ष में यह अब तक 2 प्रतिशत से कम हो गई है। यह स्थिति तब है जब चौतरफा इक्विटी और डेट मार्केट में उथल-पुथल मची हुई है।
एसबीआई केबचत खाता पर 2.7 और शॉर्ट टर्म पर 2.9 प्रतिशत ब्याज
देश का सबसे बड़ा कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) अब सात दिनों से 45 दिनों के बीच जमा के लिए 2.9 प्रतिशत की ब्याज दे रहा है। यह बचत बैंक खातों की ब्याज दर 2.7 प्रतिशत से थोड़ा बेहतर है। कोटक महिंद्रा बैंक और एचडीएफसी बैंक के लिए शॉर्ट-टर्म रेट सेविंग रेट से कम हैं। कोटक महिंद्रा बैंक बचत खाता वाले ग्राहकों के लिए शॉर्ट टर्म की ब्याज दर से 50 बीपीएस ज्यादा प्रदान करता है। एचडीएफसी बैंक और पंजाब नेशनल बैंक सात दिन की दरों के लिए बचत खाता की ब्याज से 25 बीपीएस अधिक ब्याज दे रहे हैं। वरिष्ठ नागरिकों को आम तौर पर हर बैंक 50 बेसिस पॉइंट्स अधिक ब्याज दे रहे हैं।
वित्तवर्ष 2019 में डिपॉजिट की वृद्धि दर घटी
डीबीएस बैंक की अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि जमा दरों में कटौती आम तौर पर कर्ज की दरों में बदलाव से पहले या बाद में होती है। क्योंकि बैंक मार्जिन बनाए रखना चाहते हैं। जाहिर है कि डिपॉजिट की ब्याज दर में निरंतर कमी फाइनेंशियल संकट बन गई है। उन्होंने कहा कि रेपो दर में आगे और कटौती तथा आसान लिक्विडिटी ऑपरेशन की उपयोगिता को कम कर दिया है। 2020 में समाप्त वित्त वर्ष में जमा वृद्धि दर घटकर लगभग 8 प्रतिशत हो गई। वित्त वर्ष 2019 में यह 10 प्रतिशत थी।
चालू वित्त वर्ष में जमा में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि
चालू वित्त वर्ष के अब तक पहले दो महीनों में जमा राशि में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हालांकि 22 मई को समाप्त पखवाड़े में इसमें मामूली गिरावट आई है। बॉर्कलेज प्राइवेट क्लाइंट्स इंडिया के प्रमुख संदीप दास ने कहा, "जमा दरों में इतनी गिरावट के साथ हम देख रहे हैं कि लोग टैक्स फ्री बांड, सॉवरेन गोल्ड बांड और यहां तक कि नकदी और डेट म्यूचुअल फंड के रूप में अन्य डेट इंस्ट्रूमेंट की ओर मुड़ रहे हैं।
सेविंग जनरेशन पर निगेटिव असर हो सकता है
रिटर्न में गिरावट से देश की सेविंग जनरेशन पर निगेटिव असर पड़ सकता है। यह पहले से ही 15 साल के निचले स्तर पर है। वित्त वर्ष 2019 में भारत की कुल बचत जीडीपी के 30.1 प्रतिशत पर आ गई थी। वित्त वर्ष 2012 में यह 34.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2008 में 36 प्रतिशत थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, घरेलू बचत वित्त वर्ष 2012 में 23 प्रतिशत से घटकर 2019 में 18 प्रतिशत हो गई। बचत दर का टर्म डिपॉजिट दरों के नजदीक चले जाना लंबे समय तक आर्थिक मोर्चे पर अनिश्चितता का संकेत हो सकता है।
बांड यील्ड अभी रेंज बाउंड रह सकती है
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस को उम्मीद है कि बांडयील्ड अभी भी रेंज-बाउंड रहेगी। लिक्विडिटी रिवर्स रेपो के माध्यम से आरबीआई के पास वापस जा रही है और अंत में गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (जी-सेक) और राज्य के विकास के कर्ज में जा सकता है। उन्होंने कहा कि अधिक जी-सेक जारी करने से रिटर्न बढ़ना चाहिए।
विश्लेषकों के मुताबिक क्रेडिट, इक्विटी और निजी बाजारों जैसे रियल रिस्क असेट्स में निवेश सीमित हो गया है। निवेशक अभी भी इक्विटी जैसे जोखिम वाले असेट्स के लिए इंतज़ार कर रहे हैं।
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