नई दिल्ली: यूक्रेन (Ukraine) पर हमला करने के लिए रूस (Russia) की निंदा करने के बजाय कुछ भारतीय इसे सही ठहरा रहे हैं। उन्हें इस हमने में कुछ भी बुरा नहीं दिखाई दे रहा है। लोग कह रहे हैं कि हमें भी क्यों ना रूस की तरह ही पीओके (POK) पर हमला कर देना चाहिए। इसका जवाब यह है कि हम रूस के बराबर सक्षम नहीं है। रूस के पास हमसे कई अधिक ताकतवर सेना है। वहीं, हम रूस के विपरीत एक परमाणु हथियारों से संपन्न सेना का सामना करेंगे, जिसके पास सुपर पावर चीन का सपोर्ट है। रूस-यूक्रेन लड़ाई (Russia Ukraine War) की बात करें, तो यूक्रेन के पास न तो परमाणु हथियार हैं और ना ही नाटो (NATO) की सेना उसके साथ लड़ रही हैं। इसके अलावा क्या आप सोच सकते हैं कि रूस-यूक्रेन की लड़ाई का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं। रूस और यूक्रेन की लड़ाई () वैश्विक बाजार पर संकट के काले बादल लेकर आई है। रूस क्रूड ऑयल (Crude Oil Prices) और गैस का प्रमुख उत्पादक देश है। साथ ही रूस और यूक्रेन कृषि उत्पाद और मेटल का भी बड़ी मात्रा में निर्यात करते हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंध इस सप्लाई चेन को बाधित कर देंगे, जिससे वैश्विक बाजार में कई वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होगी। यह महंगाई को एक नए स्तर पर ले जा सकता है। आइए जानते हैं कि भारत पर रूस-यूक्रेन की लड़ाई का क्या असर पड़ेगा और इससे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) का बजट कैसे गड़बड़ा सकता है। तेल की कीमतों में लग सकती है आग पेट्रोल-डीजल की कीमतें () बढ़ते ही कई सारी वस्तुओं के भाव बढ़ जाते है, जिससे महंगाई दर को संभालना मुश्किल हो जाता है। रूस-यूक्रेन की लड़ाई से भारत को सबसे बड़ा खतरा यही है। ब्रेंट ऑयल की कीमत इस समय 94.51 डॉलर प्रति बैरल है। हाल ही में यह 101 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी। रूस क्रूड ऑयल का एक बड़ा निर्यातक देश है। कई यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं। इसमें गैस आपूर्ति अहम है। रूस से क्रूड ऑयल की सप्लाई बाधित रहने से कच्चे तेल के वैश्विक भाव में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। जिसका सीधा असर भारत पर भी पडे़गा। बिगड़ जाएगा बजट का गणित तेल मंत्रालय के अनुसार, अगले वित्त वर्ष में देश में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग 214.5 मिलिटन टन पहुंचने के आसार हैं। ऐसा होता है तो यह खपत उच्चतम स्तर पर होगी और 2021-22 के संशोधित अनुमानों से 5.5 फीसदी अधिक होगी। भारत दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों (petroleum products) का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। साथ ही अगले वित्त वर्ष में देश में पेट्रोल-डीजल की खपत रेकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। हमारा देश अपनी कुल जरूरत का 85 फीसदी तेल बाहर से मंगाता है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी निश्चित रूप से देख का आयात बिल बिगाड़ देगी और बजट का गणित गड़बड़ा जाएगा। जीडीपी ग्रोथ पर असर रिसर्च फर्म नोमुरा (Nomura) की रिपोर्ट के अनुसार, क्रूड ऑयल और खाद्य वस्तुओं की कीमतों (Food Prices) में लगातार बढ़ोत्तरी एशिया की अर्थव्यवस्थाओं पर काफी बुरा असर डालेंगी। बढ़ती महंगाई, कमजोर चालू खाता, बढ़ता घाटा और आर्थिक ग्रोथ के प्रभावित रहने से मुश्किल और बढ़ जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया कि इस स्थिति में भारत, थाइलैंड (Thailand) और फिलीपींस (Philippines) को सबसे अधिक नुकसान होगा। शुद्ध रूप से तेल आयातक होने के चलते भारत को भारत को भी काफी नुकसान होगा, क्योंकि तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। रिपोर्ट मे कहा गया, 'कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से उपभोक्ताओं और कारोबारों पर काफी बुरा प्रभाव पडे़गा। हमारा अनुमान है कि तेल की कीमतों में प्रत्येक 10 फीसद उछाल के कारण जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) में करीब 0.20 पर्संटेज प्वाइंट की गिरावट आएगी।' महंगाई बढ़ेगी क्रूड ऑयल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं और कारोबारों पर पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाएग और कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाएंगी। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि क्रूड बास्केट में 10 फीसद की स्थायी बढ़त WPI आधारित महंगाई में 1.2 फीसद और CPI आधारित महंगाई में 0.3 से 0.4 फीसद की बढोत्तरी कर सकती है। आरबीआई के लिए महंगाई दर को संभालना चुनौती हाल ही में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद आरबीआई (RBI) गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि वित्त वर्ष 2023 में मुद्रास्फीति के 4.5 फीसद रहने का अनुमान है। लेकिन रूस-यूक्रेन लड़ाई से मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम काफी बढ़ गया है। ऐसे में आरबीआई के लिए महंगाई को काबू करना बड़ी चुनौती होगी।
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